लखनऊ, यादव समाज से भारतीय जनता पार्टी का अचानक बढ़ता प्रेम लोगों को आश्चर्य में डाल रहा है। ढाई महीने के अंदर तीन बड़ी घटनायें इस बात का प्रमाण हैं।
भारतीय समाज जाति आधारित है और इसलिये राजनीति भी जाति के प्रभाव से मुक्त नहीं है। भारतीय जनता पार्टी की राजनैतिक रणनीति भारतीय समाज के तीनों समुदायों को न केवल अपनी चुनावी राजनीति से दूर रखने बल्कि इनके विरोध पर आधारित रही है। विशेषकर हिंदी पट्टी की बात करें तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने यादव-जाटव-मुसलमान के त्रिकोण को न केवल अपनी चुनावी राजनीति से दूर रखा, बल्कि इन तीनों समुदायों के विरोध के आधार पर उसने अपने समर्थन की मुहिम चलाई और चुनावी राजनीति में सफल भी रही। कमोबेश यही स्थिति बिहार में भी रही।
ऐसी स्थिति में बीजेपी का अचानक बढ़ता यादव प्रेम चौंकाने वाला है। ढाई महीने के अंदर तीन बड़ी घटनायें इस बात का साक्षात प्रमाण हैं। सबसे पहले, 25 जुलाई 2022 को कानपुर के मेहरबान सिंह पुरवा में यादव समाज के बड़े नेता चौधरी हरमोहन सिंह की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम को , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी। अपने वर्चुअल संबोधन के द्वारा उन्होने चौधरी हरमोहन सिंह का गुणगान करके सभी को चौंकाया था।
इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की अति महत्वपूर्ण समिति केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में हरियाणा से पूर्व सांसद रहीं डा0 सुधा यादव को इंट्री मिली। देश में कई दिग्गज नेता हैं, लेकिन सबको पीछे छोड़ते हुए सुधा यादव को यह मुकाम हासिल होना महत्वपूर्ण है।
और अभी 5 अक्टूबर 2022 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्थापना दिवस पर पहली बार किसी महिला का मुख्य अतिथि होना और वो भी किसी यादव महिला का मुख्य अतिथि होना सबसे ज्यादा चौंकाने वाला है। पर्वतारोही संतोष यादव इसबार आरएसएस मुख्यालय में स्थापना दिवस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि बनीं।
ढाई महीने के अंदर इन तीन बड़ी घटनाओं के खास मायनें हैं। इसके बारे मे विस्तार से जानकारी दे रहें हैं वरिष्ठ पत्रकार अनुराग यादव-