लखनऊ, दीपावली के बाद गोवर्धन (Govardhan) पूजा का पर्व मनाया जाता है, जिसका विशेष महत्व है।
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं। जिसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने लोगों से इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था हालांकि इससे पहले लोग बारिश के देवता इंद्र की पूजा करते थे।
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श्रीकृष्ण का तर्क
पौराणिक कथा के अनुसार जिस समय श्री कृष्ण ब्रज में रह रहे थे, तब लोग अच्छी बारिश के लिए इंद्रदेव का पूजन करते थे। एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया ” मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं।” कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की उपज होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है।
तब श्री कृष्ण बोले इंद्र का तो कर्म है पानी बरसाना, ये कर्म तो उन्हें करना ही चाहिए। लेकिन हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय गोवर्धन पर्वत पर चारा चरती हैं । हमारी कृषि उपज का भी बड़ा हिस्सा गोर्वधन पर्वत से ही आता है। इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं। अत: ऐसे अहँकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।
इसके बाद कृष्ण ने ब्रज वासियों को बताया कि गोवर्धन पर्वत से गोकुल वासियों को पशुओं के लिए चारा मिलता। गोवर्धन पर्वत बादलों को रोककर वर्षा करवाता है जिससे कृषि उन्नत होती है। इसलिए गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए न कि इन्द्र की। श्रीकृष्ण की बात से सभी ब्रजवासी सहमत थे। इसलिए उन्होंने इंद्र की बजाय गोवर्धन पूजा करने का मन बना लिया। इस बात से इंद्र रुष्ट हो गए।
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देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा आरम्भ कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियन्त्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इन्द्र निरन्तर सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे लगा कि उनका सामना करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता है। तब इन्द्र अपने किये पर अत्यन्त लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहँकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें।
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इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रङ्ग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।
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लोक संदेश
इस घटना के माध्यम से श्रीकृष्ण ने लोगों को बड़ा संदेश दिया है। उन्होने बताया है कि
किसी से डरकर उसका पूजा या सम्मान मत करो। जो अहंकारी हो आपके साथ रहना न पसंद करता हो, न आपके संपर्क में हो उसका सम्मान मत करो।अहंकारी व्यक्ति या नुकसान पहुंचाने वाले को सम्मान मत दो। न तो किसी के प्रभाव में आकर उसको सम्मान दो।
लेकिन इसी के साथ ये भी बताया है कि
सम्मान उसे अवश्य दो जो तुम्हारा हितरक्षक हो। उसका सम्मान सबसे जरूरी होता है जो आपकी आजीविका चलाता हो या जीवन यापन में मदद करता हो।अपने प्रति किये गये किसी दूसरे के नेक कार्यों या उपकारो को सदैव याद रखो। कृतज्ञता का भाव रखो। कृतज्ञता अर्थात अपने प्रति की हुई श्रेष्ठ और उत्कृष्ट सहायता के लिए श्रद्धावान होकर दूसरे व्यक्ति के समक्ष सम्मान प्रदान करना। ये मानवता का बहुत ही विशेष गुण है जिसका पालन करना अनिवार्य है।
श्रीकृष्ण के संदेश को विस्तार से जानने के लिये नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें और वीडियो देखें-