लखनऊ, क्रांतिकारी चौधरी बदन सिंह यादव को अंग्रेजी हुकूमत ने परेशान होकर फांसी की सजा सुना दी थी। लेकिन भाग्य मे कुछ और ही लिखा था। जनता ने उन्हे सांसद बना दिया?
यूपी के बदायूं जिले के सहसवान क्षेत्र के जरीफनगर दुर्गपुर के किसान परिवार में पांच फरवरी 1893 को जन्मे चौधरी बदन सिंह का बचपन स्वतंत्रता संग्राम के बारे में सुनते और क्रांतिकारियों के कारनामें सुनाते हुये बीता था। जिसका असर ये हुआ कि युवा होते ही उनमें भी देश प्रेम की लहरें हिलोरें मारने लगीं और वह स्वतंत्रता आंदोलन मे कूद पड़े। गरम दल से ताल्लुक रखने वाले चौधरी बदन सिंह ने बदायूं में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजी हुकूमत को खूब छकाया। बार-बार उन्होंने अंग्रेजी शासन को चुनौती दी। इस बीच सामाजिक कार्यों में भी उन्होने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और अपने समाज यादव समाज के वह सबसे चहेते नेता बन गये। वर्ष 1925 में, उन्हें अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा का अध्यक्ष चुना गया।
कुछ ही दिनों मे अपने विद्रोही जज्बे की बदौलत उनकी गिनती जिले के अग्रणी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में होने लगी। इस बीच उन्होने नौजवानों को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने की मुहिम शुरू कर दी। जिसके चलते वह अंग्रेजी हुकूमत की आंखों की किरकिरी बनने लगे। अंग्रेजी हुकूमत ने उनको आठ बार जेल भेजा। जेल में उनको यातनाएं दी गईं, लेकिन वह न हिम्मत हारे और न ही अंग्रेजी हुकूमत के जुल्म से विचलित हुए।
स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था तभी क्रांतिकारी चौधरी बदन सिंह ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी। सन् 1941 में, चौधरी बदन सिंह ने अपने कुछ खास साथियों के साथ मिलकर कछला और उझानी के बीच स्थित बितरोई रेलवे स्टेशन को आग लगा दी।
इन घटनाओं का जिक्र रुहेलखंड के वरिष्ठ इतिहासकार प्रोफेसर गिरिराज नंदन की पुस्तक ‘बदायूं दर्शन’ और ‘रुहेलखंड संस्कृति एवं इतिहास’, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू रघुवीर सहाय की पुस्तक ‘बदायूं जिले के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास’ में भी मिलता है।
इन घटनाओं से घबराई अंग्रेज सरकार ने चौधरी बदन सिंह को 1942 में फिर गिरफ्तार कर लिया। उनको जेल में यातनाएं दी गई। अंग्रेजी हुकूमत ने उन पर मुकदमा चलाया और उनसे हमेशा के लिये छुट्टी पाने के उद्देश्य से, चौधरी बदन सिंह को फांसी की सजा सुना दी गई।
लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। इस बीच, क्रांतिकारियों और शहीदों की तपस्या रंग लाई और देश को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी शासन से आजादी मिल गई। जिससे क्रांतिकारी चौधरी बदन सिंह की जिंदगी मे बड़ा परिवर्तन आया। भारत स्वतंत्र हुआ तो अब उनकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया। वह सजा काटने के बाद जेल से बाहर आए। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद चुने गए। वह दो बार यानि सन् 1962 तक सांसद रहे।
जनता ने न केवल उनको बल्कि उनके परिवार जनों को भी भरपूर सम्मान दिया। बाद में उनकी बेटी शांति देवी यादव, उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य, दो बार सहसवान विधान सभा क्षेत्र से विधायक और फिर संभल लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहीं। वर्ष 2015 में तत्कालीन सांसद व सहसवान क्षेत्र के विधायक ओमकार सिंह ने जरीफनगर थाने के सामने चौधरी बदन सिंह की याद में एक पार्क का निर्माण कराया था। यहां उनकी प्रतिमा भी लगवाई गई।